Patriotic India Poems by Shaheed Ram Prasad Bismil

यदि देश हित मरना पड़े मुझ को सहस्त्रों बार भी ।
तो भी न मैं इस कष्ट को निज ध्यान में लाउं कभी ।।
हे ईष भारतवर्ष में शत बार मेरा जन्म हो ।
कारण सदा ही मृत्यु का देशोपकारक कर्म हो ।।
सर फ़रोशाने वतन फिर देखलो मकतल में है ।
मुल्क पर कुर्बान हो जाने के अरमां दिल में हैं ।।
तेरा है जालिम की यारों और गला मजलूम का ।
देख लेंगे हौसला कितना दिले कातिल में है ।।
शोरे महशर बावपा है मार का है धूम का ।
बलबले जोशे शहादत हर रगे बिस्मिल में है ।।



Patriotic Poem by RamPrasad Bismil


अरूजे कामयाबी पर कभी तो हिन्दुस्तां होगा ।
रिहा सैयाद के हाथों से अपना आशियां होगा ।।

चखायेगे मजा बरबादिये गुलशन का गुलची को ।
बहार आयेगी उस दिन जब कि अपना बागवां होगा ।।

वतन की आबरू का पास देखें कौन करता है ।
सुना है आज मकतल में हमारा इम्तहां होगा ।।

जुदा मत हो मेरे पहलू से ऐ दर्दें वतन हरगिज ।
न जाने बाद मुर्दन मैं कहां.. और तू कहां होगा ।।

यह आये दिन को छेड़ अच्छी नहीं ऐ खंजरे कातिल !
बता कब फैसला उनके हमारे दरमियां होगा ।।

शहीदों की चिताओं पर जुड़ेगें हर बरस मेले ।
वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा ।।

इलाही वह भी दिन होगा जब अपना राज्य देखेंगे ।
जब अपनी ही जमीं होगी और अपना आसमां होगा ।।
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“मुलाजिम हमको मत कहिये, बड़ा अफ़सोस होता है;
अदालत के अदब से हम यहाँ तशरीफ लाए हैं।
पलट देते हैं हम मौजे-हवादिस अपनी जुर्रत से;
कि हमने आँधियों में भी चिराग अक्सर जलाये हैं।”

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है

ऐ वतन, करता नहीं क्यूँ दूसरी कुछ बातचीत,
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है
ऐ शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत, मैं तेरे ऊपर निसार,
अब तेरी हिम्मत का चरचा ग़ैर की महफ़िल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

वक़्त आने पर बता देंगे तुझे, ए आसमान,
हम अभी से क्या बताएँ क्या हमारे दिल में है
खेँच कर लाई है सब को क़त्ल होने की उमीद,
आशिकों का आज जमघट कूचा-ए-क़ातिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

है लिए हथियार दुश्मन ताक में बैठा उधर,
और हम तैयार हैं सीना लिए अपना इधर.
ख़ून से खेलेंगे होली अगर वतन मुश्क़िल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

हाथ, जिन में है जूनून, कटते नही तलवार से,
सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से.
और भड़केगा जो शोला सा हमारे दिल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

हम तो घर से ही थे निकले बाँधकर सर पर कफ़न,
जाँ हथेली पर लिए लो बढ चले हैं ये कदम.
ज़िंदगी तो अपनी मॆहमाँ मौत की महफ़िल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

यूँ खड़ा मक़्तल में क़ातिल कह रहा है बार-बार,
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है?
दिल में तूफ़ानों की टोली और नसों में इन्कलाब,
होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें रोको न आज.
दूर रह पाए जो हमसे दम कहाँ मंज़िल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

वो जिस्म भी क्या जिस्म है जिसमे न हो ख़ून-ए-जुनून
क्या लड़े तूफ़ान से जो कश्ती-ए-साहिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में 
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 इलाही ख़ैर वो हरदम नई बेदाद करते हैँ
हमेँ तोहमत लगाते हैँ जो हम फरियाद करते हैँ

ये कह कहकर बसर की उम्र हमने क़ैदे उल्फत मेँ
वो अब आज़ाद करते हैँ वो अब आज़ाद करते हैँ

सितम ऐसा नहीँ देखा जफ़ा ऐसी नहीँ देखी
वो चुप रहने को कहते हैँ जो हम फरियाद करते हैँ 
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 हैफ हम जिसपे की तैयार थे मर जाने को
जीते जी हमने छुड़ाया उसी कशाने को
क्या ना था और बहाना कोई तडपाने को
आसमां क्या यही बाकी था सितम ढाने को
लाके गुरबत में जो रखा हमें तरसाने को

फिर ना गुलशन में हमें लायेगा शायद कभी
याद आयेगा किसे ये दिल-ऐ-नाशाद कभी
क्यों सुनेगा तु हमारी कोई फरियाद कभी
हम भी इस बाग में थे कैद से आजाद कभी
अब तो काहे को मिलेगी ये हवा खाने को

दिल फिदा करते हैं क़ुरबान जिगर करते हैं
पास जो कुछ है वो माता की नज़र करते हैं
खाना वीरान कहाँ देखिए घर करते हैं
खुश रहो अहल-ए-वतन, हम तो सफ़र करते हैं
जाके आबाद करेंगे किसी वीराने को

ना मयस्सर हुआ राहत से कभिइ मेल हमें
जान पर खेल के भाया ना कोइ खेल हमें
एक दिन क्या भी ना मंज़ूर हुआ बेल हमें
याद आएगा अलिपुर का बहुत जेल हमें
लोग तो भूल गये होंगे उस अफ़साने को

अंडमान खाक तेरी क्यूँ ना हो दिल में नाज़ां
छके चरणों को जो पिंगले के हुई है ज़ीशान
मरतबा इतना बढ़े तेरी भी तक़दीर कहाँ
आते आते जो रहे ‘बाल तिलक’ भी मेहमां
‘मंडाले’ को ही यह आइज़ाज़ मिला पाने को

बात तो जब है की इस बात की ज़िद्दे थानें
देश के वास्ते क़ुरबान करें हम जानें
लाख समझाए कोइ, उसकी ना हरगिज़ मानें
बहते हुए ख़ून में अपना ना ग़रेबान सानें
नासेहा, आग लगे इस तेरे समझाने को

अपनी क़िस्मत में आज़ाल से ही सितम रक्खा था
रंज रक्खा था, मेहान रक्खा था, गम रक्खा था
किसको परवाह थी और किस्में ये दम रक्खा था
हमने जब वादी-ए-ग़ुरबत में क़दम रक्खा था
दूर तक याद-ए-वतन आई थी समझाने को

हम भी आराम उठा सकते थे घर पर रह कर
हम भी माँ बाप के पाले थे, बड़े दुःख सह कर
वक़्त-ए-रुख्ह्सत उन्हें इतना भी ना आए कह कर
गोद में आँसू जो टपके कभी रुख्ह से बह कर
तिफ्ल उनको ही समझ लेना जी बहलाने को

देश सेवा का ही बहता है लहु नस-नस में
हम तो खा बैंटे हैं चित्तोड़ के गढ़ की कसमें
सरफरोशी की अदा होती हैं यों ही रसमें
भाले-ऐ-खंजर से गले मिलाते हैं सब आपस में
बहानों, तैयार चिता में हो जल जाने को

अब तो हम डाल चुके अपने गले में झोली
एक होती है फ़क़ीरों की हमेशा बोली
खून में फाग रचाएगी हमारी टोली
जब से बंगाल में खेले हैं कन्हैया होली
कोइ उस दिन से नहीं पूछता बरसाने को

अपना कुछ गम नहीं पर हमको ख़याल आता है
मादार-ए-हिंद पर कब तक ज्वाल आता है
‘हरदयाल’ आता है ‘युरोप’ से ना ‘लाल’ आता है
देश के हाल पे रह रह मलाल आता है
मुंतज़ीर रहते हैं हम खाक में मिल जाने को

नौजवानों, जो तबीयत में तुम्हारी ख़टके
याद कर लेना हमें भी कभी भूल-ए-भटके
आप के ज़ुज़वे बदन होये जुदा कट-कटके
और साद चाक हो माता का कलेजा फटके
पर ना माथे पे शिकन आए क़सम खाने को

देखें कब तक ये असीरा-ए-मुसीबत छूटें
मादार-ए-हिंद के कब भाग खुलें या फुटें
‘गाँधी अफ्रीका की बाज़ारों में सदके कूटें
और हम चैन से दिन रात बहारें लुटें
क्यूँ ना तरज़ीह दें इस जीने पे मार जाने को

कोई माता की ऊंमीदों पे ना ड़ाले पानी
जिन्दगी भर को हमें भेज के काला पानी
मुँह में जल्लाद हुए जाते हैं छले पानी
अब के खंजर का पिला करके दुआ ले पानी
भरने क्यों जाये कहीं ऊमर के पैमाने को

मयकदा किसका है ये जाम-ए-सुबु किसका है
वार किसका है जवानों ये गुलु किसका है
जो बहे कौम के खातिर वो लहु किसका है
आसमां साफ बता दे तु अदु किसका है
क्यों नये रंग बदलता है तु तड़पाने को

दर्दमंदों से मुसीबत की हलावत पुछो
मरने वालों से जरा लुत्फ-ए-शहादत पुछो
चश्म-ऐ-खुश्ताख से कुछ दीद की हसरत पुछो
कुश्त-ए-नाज से ठोकर की कयामत पुछो
सोज कहते हैं किसे पुछ लो परवाने को

नौजवानों यही मौका है उठो खुल खेलो
और सर पर जो बला आये खुशी से झेलो
कौंम के नाम पे सदके पे जवानी दे दो
फिर मिलेगी ना ये माता की दुआएं ले लो
देखे कौन आता है ईर्शाथ बजा लाने को 

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